¹पैट्रिक ट्राइल द्वारा, ¹युवाडी दनमलीदोई, अब्राम बिकसलर, तथा रिक बर्नेट
¹इको एशिया इम्पैक्ट सेंटर, चिआंग माई, थाईलैंड
मौजूदा संबंधन:
फ़ूड एंड एग्रीकल्चरल आर्गेनाईजेशन, संयुक्त राष्ट्र, रोम, इटली कल्टीवेट अबंडंस, फोर्ट मायर्स, फ्लोरिडा, यू एस
[सम्पादकीय टिपण्णी: यह मुख्य विषय तब से प्रचलित है जब से रिक बर्नेट इको एशिया के डायरेक्टर थे। यह अवलोकन कर कि फर्न केवल जंगल से कटनी किया जाता है और यह केवल साल के कुछ समय पर ही उपलब्ध होता है, उन्होंने उचित समझा की शायद यह अपेक्षित और कम उपयोग किया हुई प्रजाति खेती से उगाई जा सकती है। कृतिम छाँव का इस्तेमाल कर, उसको बेमौसम में भी बिक्री योग्य बनाया जाता है। उस समय से इस प्रयोग को दोहराया गया और (कई लोगों की मदद से) पूरा किया गया। यह लेख, हमने जो सीखा उसका सार है।]
(सब्ज़ी वाली फर्न) लिंगड़ा का सम्बोधन
पूरे विश्व में कई प्रकार की खाद्य फ़र्न पायी जाती हैं, उष्णकटिबंधीय इलाकों से शीतोष्णीय इलाकों तक, सामान्य रूप से इसमें पर्णांग फर्न (प्टेरिडियम सप्प.), शुतुरमुर्ग फर्न (मट्टेयुसिआ स्ट्रुथिओप्टेरिस), तथा स्टेनोचलाइना सप्प. फर्न। लेकिन इस शोध का केंद्र है सब्ज़ी वाली फर्न (डिपलाज़ियम एस्क्युलेंटम रेट्ज़.) एक उष्णकटिबंधीय चिरस्थायी फसल जो आमतौर पर एशिया और ओशियानिया क्षेत्रों में पायी जाने वाली। सकई एट अल (२०१६) इस सब्ज़ी वाली फर्न को बिना लकड़ी वाली जंगल (एन टी पी एफ) की उपज के नाम से वर्गीकृत करते हैं। यह भारत, बंगलादेश, थाईलैंड, मलेशिया, फ़िलीपीन्स और यू एस के हवाई राज्य में एक ख़ास क्षेत्रीय सब्ज़ी है (लीन एट अल., २००९)। छोटे कोमल तालपत्र (आमतौर पर जिन्हे फिडलहेड कहा जाता था) विशिष्ट रूप से अपने क्षेत्र के अनुसार ताज़े, उबालकर, हल्का उबालकर, या करी में पका कर खाए जाते हैं (डंकन २०१२)।
लिंगड़ा (सब्ज़ी वाले फर्न) का पोषण विश्लेषण कई साकारात्मक गुण दर्शाता है, यह बीटा कैरोटीन, फॉलिक एसिड, साथ में कैल्शियम, आयरन और फॉस्फोरस खनिज; जबकि गैर पोषक गुण जैसे कि फाइटिक एसिड, टैनिन्स, और ट्रिप्सिन गैर विषैली मात्रा में पाए जाते हैं (अर्चना एट ऑल., कैसेटसर्ट यूनिवर्सिटी, बैंगकॉक प्रचुर पोषक संघटन दर्शाता है (तालिका १)।
डिपलाज़ियम एस्कुलेंतुम रेटज़ का पोषक संघटन |
|
बीटा कैरोटीन (यूजी /१०० ग्रा) |
५१६.५८± २.६६ |
फॉस्फोरस (एम जी /१०० ग्रा) |
५४.०५ ±०.८२ |
विटामिन बी १ (एम जी /१०० ग्रा) |
एन डी |
विटामिन बी २ (एम जी /१०० ग्रा) |
०.०४±०.०० |
विटामिन सी (एम जी /१०० ग्रा) |
०.९४±०.८६ |
विटामिन इ (α-टोकोफ़ेरॉल) (यूजी /१०० ग्रा) |
०.२८±०.२० |
कैल्शियम (एम जी /कि ग्रा) |
१३८.००±५.२१ |
मैगनीशियम (एम जी /कि ग्रा) |
२०५.०५±२९.०७ |
पोटैशियम (एम जी /कि ग्रा) |
३६९१.७५±२७८.१७ |
सोडियम (एम जी /कि ग्रा) |
२७.१६±२.६० |
तालिका १. डिपलाज़ियम एस्कुलेंटम का पोषक संघटन रेटज़। बैंगकॉक, कैसेटसर्ट यूनिवर्सिटी, थाईलैंड, के साथ २०१७ में विश्लेषण समाप्त हो गया था।
लिंगड़ा (सब्ज़ी वाली फर्न) मौसम के अनुसार एशिया के कई बाज़ारों में पाए जातें हैं और आमतौर पर यह जंगल के नमी और छाँव वाले इलाके, जो नदी के किनारे हैं और पेड़ों के बीच में हैं, से काटे जातें हैं। बरसातों में यह स्थानीय बाज़ारों में पाए जातें हैं लेकिन यह सूखे महीनों में काफी तादात में नहीं होते हैं कि वो उपभोगक्ता की मांग पूरी कर सकें।
आजतक, इसकी कृषि की संभावना और इसके संम्भावी सस्य विज्ञान व उसकी रूकावटें खोजने के लिए बहुत कम शोध किया गया है। लिंगड़ा (सब्ज़ी वाले फर्न) जंगलों से कटाई कर काफी हद तक बाज़ारों में पाए जाते हैं पर अभी भी व्यापक रूप से इसकी, फसल की प्रजाति के तौर पर, खेतों में कामयाब रूप से उपज नहीं की जा रही है। मेर्त्ज़ (१९९९) ने मलेशिया में स्टेनोचलाइना पालुस्ट्रिस (बर्म) की डिपलाज़ियम एस्कुलेंटम (रेटज़) के साथ चलने की और पाया कि इसकी उपज बिना छाँव की परिस्थितियों में अव्यवहारिक है। इको एशिया के स्थानीय इम्पावत सेंटर, थाईलैंड में हाल में किये गए कार्य ने यह जताया की यह प्रबंधित छाँव वाले उपज की प्रणाली में उगाया जा सकता है और यह फल भी सकता है।
अध्ययन के उद्देश्य
इस मत को सत्यापित करने और परखने के लिए, एक बहु-वर्षिय क्षेत्रीय शोध स्थापित किया गया:
- एक प्रबंधित उपज प्रणाली में, विभिन्न प्रकार के छाँव प्रवृति में, लिंगड़ा (सब्ज़ी वाले फ़र्न) के विकास व बिक्री की योग्यता को मूल्यांकन करना,
- आम बरसात के मौसम के अलावा इसकी उपज को आंकना।
लिंगड़ा (सब्ज़ी वाले फ़र्न) औसतन गैर-मौसम में उगाने से छोटे किसानों के लिए, नए बाज़ारों में प्रवेश करने के, संभावित ख़ास अवसर हैं। इससे यह शोध कई इको कार्यकर्ताओं तथा औरों के लिए सम्भाव्य रूचि का कारण बन सकते हैं।
छाँव के अलग-अलग सतह पर फर्न उगना
स्थान और स्थल का विवरण
इको एशिया सीड बैंक में क्षेत्रीय परिक्षण २०११ और २०१७/२०१८ के उगाने वाले मौसम में किए गए। अध्ययन स्थल की जलवायु दशा उत्तरी थाईलैंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित (२० डिग्री १' उत्तर, ९९ डिग्री १७' पूरब), स्पष्ट बरसात के मौसम (मई से अक्टूबर) तथा स्पष्ट सूखे मौसम (नवंबर से अप्रैल) से अभिलक्षित है, इसमें तापमान पूरे वर्ष २५ डिग्री सी और ३० डिग्री सी के बीच रहते हैं (तालिका २)।
|
जून |
जुलाई |
अगस्त |
सितम्बर |
अक्टूबर |
नवंबर |
दिसंबर |
जनवरी |
फरवरी |
मार्च |
अप्रैल |
मई |
|
दौर १ (२०११) वर्षा (एम एम) |
२८७ |
३३४ |
३३५ |
३०५ |
२९ |
५ |
३ |
३ |
१ |
९२ |
६४ |
२४२ |
कुल १७०० |
तापमान (डिग्री सी) |
(२९) |
(२८) |
(२८) |
(२८) |
(२८) |
(२५) |
(२३) |
(२२) |
(२७) |
(२६) |
(३१) |
(२९) |
औसत २७ |
दौर २ (२०१७-२०१८) वर्षा (एम एम) |
२११ |
३४९ |
३४६ |
३२२
|
३५१ |
१२० |
९० |
४० |
१६ |
३४ |
८५ |
३३३ |
कुल २२९७ |
तापमान (डिग्री सी) |
(३१) |
(२९) |
(२९) |
(२९) |
(२७) |
(२६) |
(२३) |
(२५) |
(२८) |
(३२) |
(३२) |
(३१) |
औसत २८.५ |
तालिका २ संचयी मासिक वर्षा (एम एम) और औसत मासिक तापमान (डिग्री सी) आंकड़े, मए आई के लिए, थाईलैंड, शोध के पहले और दुसरे दौर पर।
शोध का ढांचा
तीन भिन्न छाँव संसाधनों के अंतर्गत फर्न को उठे हुए क्यारियों में सूरज की तेज़ रौशनी के क्षेत्रों में लगाया गया :
- बिना छाँव के (०%) नियंत्रण,
- कम छाँव (५०%), तथा
- ज़्यादा छाँव (८०%)।
इस शोध को यादृच्छिक पूर्ण खंड रचना (आर सी बी डी) चार प्रतिकृतियों के साथ व्यवस्थित किया गया। प्रतिपादन के अनुसार एक-एक कर खुले हुए परदे की लाइन १.५ मी क्यारियों के ऊपर लगाए गए (चित्र २), और सूक्ष्म छिड़काव यंत्र सूखे मौसम में स्थानीय पर्यावरण, जहाँ वह आमतौर पर उगतें हैं, की नमी दर्शाने के लिए सिंचाई के उद्देश्य से लगाए गए थे। फसल काटने का समय दोनों ही दौर में १ साल की अवधि में बढ़त और उपज की तुलना के लिए गीले या सूखे मौसम के दौरान रखा गया।
शोध की क्यारियां १मी x १मी थे और फ़र्न के प्रजनक को तकरीबन ३०सीएम x ३०सीएम नज़दीकी पे, ९ पौधे प्रति क्यारी, रोपण किया गया। प्रजनक को स्थापित क्यारियों में से, जिनमें स्थानीय जंगलों से एकत्र और प्रतिरोपित किये गए फर्न उगाये गए थे, उखाड़ा गया था। इन फर्न को उठी हुई क्यारियों में जिन्हे कई साल तक जैविक मृदा, जिसमें खाद, गाय का गोबर, और चावल के पुआल की गीली घांस शामिल थे, से बेहतर बनाया गया था, प्रतिरोपित किया गया। इस शोध के लिए कोई भी मृदा बेहतर बनाने वाले अतिरिक्त परिक्षण के समय पर नहीं मिलाये गए। लेकिन क्यारियों को रोपण के मौसम से पहले अमूमन ४ टन प्रति हेक्टर चावल के घाँसपात से ढँक दिया गया, यह मृदा की नमी बनाये रखने के लिए एक आवश्यक चरण साबित हुआ और खरपतवार को फ़र्न की स्थापना के दौरान रोकने में कारगर हुआ।
आंकड़ों का संग्रह
एक बार प्रतिरोपण स्थापित हो गए (प्रतिरोपण के तीन महीने बाद), बिक्री के लायक फ़र्न के लम्बे पत्ते के कटाई सम्बंधित आंकड़े हर क्यारी के बीच की पंक्ति से लगातार तीन सप्ताह तक १४ नमूनों की अवधि में जमा किये गए। लम्बे पत्तों को गीले ही गिना गया और वज़न किया गया जबकि उपनमूनों को ओवन में सुखाकर वज़न किया जाता था। दोनों पौधे की लम्बाई और मृत्यु दर की प्रतिशत हर तीन सप्ताह में क्यारी क्षेत्र के नमूनों में नापे गए। पौधे की लम्बाई सबसे लम्बी फ़र्न की पत्ती से नापी गयी, जबकि मृत्यु दर का प्रतिशत, वरिष्ठम दर जो देखने से ज्ञात की जा सकता है, अनुमानित अंक शून्य लिया गया (कोई मृत्यु नहीं), डेडमैन एट अल के द्वारा उल्लेखित (२००२)।
इस शोध के भिन्न-भिन्न केंद्र बिंदु के दौरान खायी जा सकने वाली फर्न खरीदने के लिए स्थानीय बाजार में दौरे किये गए, ताकि उसकी निगरानी, बाज़ार के मूल्य और फ़र्न की उपलब्धता वर्ष के समय अनुसार, की जा सके। लम्बे सिरे के पत्ते गट्ठों में खरीदे गए और नए वज़न दर्ज किये गए, इसी प्रकार एक-एक की गिनती भी की गयी। बाजार से खरीदे गए लम्बे पत्तों के सिरे शहर के नज़दीक स्थानीय गांव के बाज़ार से (फेंग), और पास के शहर चिआंग माई से ले कर दामों का मूल्यांकन किया गया।
छाँव और नमी दोनों ही से फर्क पड़ता है!
मैदान के प्रशिक्षण के परिणाम यह प्रकट करते हैं कि सब्ज़ी वाली फर्न की खेती, दोनों बरसात और सूखे के मौसम में उपजाऊ हो सकती है। बरसात के मौसम में उपज सूखे मौसम की तुलना में, तब भी जब पर्याप्त मात्रा में सिंचाई की गयी, ज़्यादा हुई। हमारे परिणामों ने यह साबित कर दिया कि प्रबंधित उपज प्रणाली में छाँव की एक बहुत बड़ी भूमिका है, और छाँव वाली क्यारियां बिना छाँव वाली क्यारियों के मुकाबले में बेहतर उपज देतें हैं (चित्र ३)। आंशिक छाँव में उगाये गए फ़र्न (५०% छाँव) ज़्यादा छाँव वाली संरचनाओं (८०%) से, दोनों ही प्ररिक्षण दौर में, ज़्यादा उपज देते हैं, हालाँकि तुलना की जाये तो छाँव होना या न होना, दोनों में फर्क छोटा ही था।
हर हाल में जो फ़र्न बिना छाँव के उगाई गयी उनकी मृत्यु दर उन से जो छाँव में उगाई गयी काफी ज़्यादा थी। वनस्पतिक भाग में यह मृत्यु इस बात को दर्शाता है कि लिंगड़ा (सब्ज़ी वाले फ़र्न) सूरज की रौशनी के प्रति बहुत संवेदनशील हैं और इसलिए पौधे को घर में उगाने के लिए यह एक प्रमुख कारक है। दोनों पहले और दुसरे दौर में औसत वार्षिक तापमान में १.५ डिग्री सी का अंतर था, जो की इस अतिरिक्त बढ़त को समझाता है, स्पस्ष्ट है दुसरे दौर में क्यों बिना छाँव की वजह से मृत्यु दर ज़ियादा था।
इस कार्य के परिणामों का विश्लेषण करने पर हमने पाया कि १ दौर से २ दौर में, बरसात के मौसम की तुलना में सूखे मौसम की उपज में काफी फर्क था। यह विस्तारित वर्षा ऋतू और दूसरे दौर के दौरान औसत से ज़्यादा वर्षा (२२९७ एम एम, १७०० एम एम पहले दौर की तुलना में) सहसंबंधित है। यह इस बात को दर्शाता है कि जबकि छाँव से उपज में फर्क पड़ता है और कि यह फ़र्न वाली सब्ज़ी की उपज में एक आवश्यक कारक है, सही मात्रा में नमी भी उतनी ही आवश्यक है। जबकि सिंचाई पूरे मौसम भर हर ३-४ दिन पे की गयी थी, यह आवश्यक है कि सारे समय और नमी बनाये रखने की ज़रुरत है, और किसी भी प्रकार से पानी को लेकर कोई तनावपूर्ण स्तिथि नहीं होनी चाहिए।
संभावनाएं और लघु पैमाने के खेती अनुप्रयोग
जबकि यह परिणाम कहीं से भी सम्पूर्ण नहीं कहे जा सकते हैं, यह इस बात को अवश्य दर्शाते हैं की इस फ़र्न की सब्ज़ी की उपज व्यवस्थित रूप से की जा सकती है। हम विश्वास करते हैं कि सब्ज़ी वाली फ़र्न का उत्पादन लघु पैमाने की खेती में, दोनों नकदी फसल और घरेलु उपयोग के लिए किया जा सकता है और करना भी चाहिए। यह नज़र अंदाज़ और कम उपयोग की गयी प्रजाति (एन यू एस) एक बिक्री लायक आला दर्जे की फसल होने की संभावना रखती है, इसके साथ ही घरेलु आहार विविधता के लिए एक पोषक, प्रचुर पूरक सब्ज़ी है। सब्ज़ी वाली फ़र्न के पास एक बड़ी सम्भावना है एक आला दर्ज़े की फसल बनने का, दोनों दक्षिण पूर्व एशिया और उसके आगे। और अधिक शोध की ज़रुरत है इस लिंगड़ा (सब्ज़ी वाली फ़र्न) की खेती करने के तरीकों को परिशोधित करने के लिए, लेकिन इसमें काफी अच्छी सम्भावना है कामयाब उत्पादन प्रणाली बनने की।
स्वीकृति
लेखक बहुत से लोगों का धन्यवाद करना चाहेंगे जिनका हाथ इस प्रक्रिया में था। बहुत हाथों ने मदद दी आंकड़े संगठित करने में और क्यारी का रखरखाव करने में, ख़ास धन्यवाद इको एशिया स्वयंसेवक जेम्स मैनसन, करिस लोटजे, कालेब और कैलेह फिलिप्स को देना ज़रूरी है। क्यारियों की स्थापना और देखरेख करने में और कठिन परिश्रम से आंकड़े इकट्ठे करने में आपकी मदद के लिए धन्यवाद।
प्रसंग
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